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एससी-एसटी के विरुद्ध हत्याचार 61391 साल 2022 में प्रकाश में आए

 


हाल ही में केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम- 1989 के तहत एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें वर्ष 2022 में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अत्याचार की स्थिति ।

साल 2022 में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अत्याचार के 51,656 मामले और अनुसूचित जनजातियों (STs) के खिलाफ 9,735 मामले दर्ज किये गए। अनुसूचित जातियों के 97.7% मामले और अनुसूचित जनजातियों के 98.91% मामले सिर्फ़ 13 राज्यों में सबसे ज्यादा है।

6 राज्यों में लगभग 81% मामले दर्ज किए गए हैं 

 उत्तर प्रदेश में 12,287 मामले (23.78%)

राजस्थान में 8,651 मामले (16.75%)

मध्य प्रदेश में 7,732 मामले (14.97%)

अन्य राज्य में बिहार 6,799 (13.16%), ओडिशा 3,576 (6.93%), और महाराष्ट्र 2,706 (5.24%)।

अनुसूचित जनजातियों के मामले 

मध्य प्रदेश में 2,979 मामले (30.61%)

राजस्थान में 2,498 मामले (25.66%)

 ओडिशा में 773 मामले (7.94%). 

अन्य राज्य में 691 मामले के साथ महाराष्ट्र में (7.10%) और आंध्र प्रदेश में 499 मामले (5.13%) दर्ज हुए।

अनुसूचित जाति से संबंधित 60.38% मामलों में चार्ज शीट दायर की गई , जबकि झूठे दावों या सबूतों की कमी जैसे कारणों से 14.78% मामलों में ही अंतिम रिपोर्ट दी जा सकी। वहीं 

अनुसूचित जनजाति से संबंधित 63.32% मामलों में चार्ज शीट दाखिल की गई , जबकि 14.71% मामलों में आखिरी रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।

साल 2022 के आखिर तक, अनुसूचित जातियों से जुड़े 17,166 मामले और अनुसूचित जनजातियों से जुड़े 2,702 मामले अभी भी जाँच के अधीन ठंडे बस्ते में पड़े हुए हैं ।

 साल 2020 में 39.2% से घटकर साल 2022 में 32.4% दोष सिद्धि हो पाए , जो न्यायिक परिणामों में चिंताजनक प्रवृत्ति को दर्शाता है।

14 राज्यों के 498 ज़िलों में से केवल 194 ज़िलों में SC-ST के विरुद्ध अत्याचारों के मुकदमों में त्वरित निपटान के लिये विशेष अदालतें स्थापित की गई 

अत्याचारों से ग्रस्त विशेष ज़िलों की पर्याप्त रूप से पहचान नहीं की गई है, NCRB के अनुसार उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा SC - ST पर अत्याचार के मामले हुए जहां किसी भी क्षेत्र की पहचान नहीं की गई है।

 गहरी जड़ें जमाए हुए जाति आधारित भेदभावपूर्ण प्रथाओं को कायम रखते हैं , जहाँ SC/ST समुदायों को हमेशा "नीचा" माना जाता है और उनकी जन्म-आधारित जातिगत पहचान के कारण सामाजिक बहिष्कार और हिंसा का शिकार होना पड़ता है।

ऐतिहासिक रूप से भूमि स्वामित्व से वंचित, SC/ST समुदायों को जमीन तक पहुँच को लेकर निरंतर संघर्ष का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण प्रमुख जातियों के साथ विवाद होता है।

आर्थिक रूप से वंचित होना: शिक्षा, रोज़गार और आर्थिक संसाधनों तक सीमित पहुँच के कारण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समूहों असुरक्षा बढ़ जाती है, जिससे वे प्रभुत्वशाली समुदायों द्वारा शोषण और हिंसा के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।

प्रभावशाली अगड़ी जातियाँ प्राय: असंगत राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव रखती हैं जिससे वे कानूनी परिणामों के भय के बिना भेदभावपूर्ण प्रथाओं को बनाए रखने में कामयाब हो जाती हैं।

 सरकारी तंत्र में जातिगत भेदभाव के व्यापक प्रभाव से SC/ST के लोगों को बहुत ही कम न्याय मिल पाता है

राजनीतिक लोग चुनावी लाभ लेने के लिए भी जातिगत तनाव उत्पन्न करते हैं। जिससे वोटो का ध्रुवीकरण किया जा सके।

जिससे जातिगत मामलों में वृद्धि होती हैं


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